बच्चों के साथ यौनिक हिंसा में क्या हैं, कानून?

बच्चों के मामले में यौन हिंसा अथवा बलात्कार से सम्बंधित कानूनी प्रावधान 2012 से पूर्व एक ही थे, पर नए कानून ‘लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012’ के आने के बाद बच्चों के मामलों को इस कानून के अंतर्गत लाया गया है इस कानून से सम्बंधित विवरण निम्न हैं – 

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम से क्या अर्थ है और यह कब लागू हुआ?
उत्तर: पोक्सो अधिनियम (POCSO Act), लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act) का संक्षिप्त नाम है यह अधिनियम भारत में 14 नवम्बर, 2012 को लागू हुआ। यह अधिनियम 18 वर्ष की आयु वर्ग के नीचे के व्यक्ति को बालक के रूप में परिभाषित करता है तथा यह लिंग तटस्थ है और यह लैंगिक/ यौन शोषण के सभी प्रकार के मामलों के लिए एक स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। जैसे - यौन उत्पीड़न, छेदक (penetrative) यौन-शोषण या गैर-छेदक (non-penetrative) यौन-शोषण और अश्लील साहित्य आदि।

प्रश्न: यह भारतीय दंड संहिता (IPC) के अन्य प्रावधानों से कैसे अलग है?
उत्तर: यौन अपराध वर्तमान में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत कवर किया जाता है। आईपीसी बच्चों के खिलाफ सभी प्रकार के यौन अपराधों को शामिल नहीं करता है और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि  यह पीड़ित वयस्क और बच्चे के के बीच भेद नहीं करता।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 के अन्तर्गत बच्चा कौन है?
उत्तर: पोक्सो अधिनियम, 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है तथा यौन-हमला, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से 18 साल से कम आयु के सभी बच्चों को सुरक्षा प्रदान करता है।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 में विशेष क्या है?
उत्तर: अपराध की गंभीरता के अनुसार अधिनियम में कड़े दंड का प्रावधान है जिसे वर्गीकृत किया गया है। साधारण दंड से कठोर कारावास के अलग-अलग अवधियों के दंड प्रावधान है। जुर्माने का भी प्रावधान है जिसका निर्णय कोर्ट लेगा।

प्रश्न: संगीन (aggravated) अपराध क्या है?
उत्तर: एक अपराध संगीन अपराध है जब वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो विश्वास या बच्चों के लिए प्रतिबद्ध पद पर हों, जैसे सुरक्षा बल, पुलिस अधिकारी, लोक सेवक आदि।


प्रश्न: विभिन्न अपराधों के लिए पोक्सो अधिनियम 2012 में कौन-कौन से दंड हैं?
उत्तर: इस अधिनियम में शामिल किये गए अपराधों के निम्न प्रकार के दंड का प्रावध है:
·         छेदक यौन उत्पीड़न (Penetrative Sexual Assault) (धारा 3) - कम से कम सात साल,  जो आजीवन कारावास तक का हो सकता है, और जुर्माना (धारा 4)
·         संगीन छेदक यौन उत्पीड़न (Aggravated Penetrative Sexual Assault) (धारा 5) - कम से कम दस साल, जो आजीवन कारावास तक का हो सकता है, और जुर्माना (धारा 6)
·         यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) (धारा 7) - कम तीन साल, जो पांच साल तक का हो सकता है, और जुर्माना (धारा 8)
·         संगीन यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault) (धारा 9) - कम से कम पांच साल, जो सात साल तक का हो सकता है, और जुर्माना(धारा 10)
·         यौन बाल-उत्पीड़न (Sexual Harassment of the Child) (धारा 11) - तीन साल और जुर्माना (धारा 12)
·         बच्चों का अश्लील साहित्य हेतु उपयोग (धारा 13) - पांच साल और जुर्माना। दोहराने की स्थिति में, सात वर्ष और जुर्मान (धारा 14 (1))

प्रश्न: क्या होगा यदि कोई अपराध की घटना की जानकारी छुपाता है?
उत्तर: यदि कोई अपराध घटना/ संदेह की जानकारी छुपाता है या सूचना देने में विफल रहता है तो इसके लिए छः माह की अवधि के लिए कारावास से दण्डित होगा जो एक साल तक बढ़ सकता है।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 के मामलों की सुनवाई कहाँ की जाएगी?
उत्तर: अधिनियम में, बच्चों के सर्वोत्तम हित को सर्वोपरि महत्व देते हुए न्यायिक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में कानून के तहत अपराधों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान है। कानून के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की संभावना के लिए भी व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, विशेष अदालत के रूप में जहाँ तक संभव हो, एक वर्ष की अवधि के अंदर सुनवाई को पूरा  पूरा करना है।

प्रश्न: क्या पोक्सो अधिनियम 2012 में बच्चों के अनुकूल प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है?
उत्तर: हाँ, अधिनियम के अन्तर्गत अपराध की रिपोर्टिंग, सबूत की रिकॉर्डिंग, जांच और सुनवाई के लिए बच्चों के अनुकूल प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 अपराध करने के इरादे को शामिल करता है या नहीं?
उत्तर: अधिनियम अपराध की के इरादे/ मंशा को भी शामिल करता है, तब भी जबकि वो किसी भी कारण से उसमे असफल होता है और दंडित किए जाने की व्यस्था करता है। अधिनियम के तहत अपराध के लिए प्रयास को अपराध माना गया है और उसके लिए अपराध करने के लिए निर्धारित सजा से आधी सजा तक का प्रावधान है।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 में विशेष रूप से क्या उल्लेख है?
उत्तर: अधिनियम के अन्तर्गत रिपोर्टिंग के लिए बाल मित्र प्रक्रियाओं, सबूत, जांच की रिकॉर्डिंग और अपराधों की सुनवाई को शामिल किया गया। इसमें शामिल है बच्चे से कोई आक्रामक पूछताछ या चरित्र हनन नहीं करना तथा मामले का इन कैमरा ट्रायल (In-camera trial) करना।

प्रश्न: क्या अपराध के लिए उकसाने को पोक्सो अधिनियम 2012 में दंडनीय माना गया है?
उत्तर: हाँ, अधिनियम में अपराध के लिए उकसाने को भी अपराध करने के तरह ही माना गया है और उसके लिए सजा का भी प्रावधान है। यह यौन उद्देश्यों के लिए बच्चों की तस्करी को इसके अन्तर्गत शामिल करता है।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 के अन्तर्गत जघन्य मामलों में साबित किसको करना (whom lies the burden of proof) है ?
उत्तर: छेदक यौन-उत्पीड़न (Penetrative Sexual Assault), संगीन छेदक यौन-उत्पीड़न (Aggravated Penetrative Sexual Assault), यौन-उत्पीड़न (Sexual Assault) और संगीन यौन-उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault) के जैसे जघन्य अपराधों के लिए, आरोपी को साबित करना है कि वह निर्दोष है यानि साबित करने का बोझ को आरोपी पर स्थानांतरित कर दिया है। इस प्रावधान को बच्चों के अधिक जोखिम में रहने और बच्चों की निर्दिशिता को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम 2012 में विशेष किशोर पुलिस ईकाई (SJPU) की क्या भूमिका है?
उत्तर: जैसे ही विशेष किशोर पुलिस इकाई (SJPU) या स्थानीय पुलिस के पास मामला आता है, वैसे ही चौबीस घंटे के भीतर, बच्चे के लिए जरुरी देखभाल की व्यवस्था की जाएगी। जैसे- जरुरत के अनुसार आश्रय गृह में आश्रय की व्यवस्था, नजदीकी अस्पताल में भर्ती करना आदि । SJPU या स्थानीय पुलिस के पास मामला रिपोर्ट होने के चौबीस घंटे के भीतर मामले SJPU या स्थानीय पुलिस द्वारा बाल कल्याण समिति को भी रिपोर्ट करना है जिससे दीर्घकालिक पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके ।
प्रश्न: क्या बच्चे की आपातकालीन चिकित्सा सुविधा हेतु किसी प्रकार के दस्तावेज  (documentation) या मजिस्ट्रेट की अनुमति (magisterial requisition) आवश्यक है ?
उत्तर: इस अधिनियम में यह स्पष्ट कर दिया है कि आपातकालीन स्थितियों में बच्चे की मेडिकल ईलाज/ सुविधा देने हेतु इलाज से पहले दस्तावेज  या मजिस्ट्रेट की अनुमति की मांग नहीं की जाएगी।

प्रश्न: क्या पोक्सो अधिनियम के अन्तर्गत बच्चे को कोई मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, शोषण के परिणामस्वरूप विकलांगता, बीमारी या गर्भावस्था के दुरुपयोग के साथ-साथ शिक्षा और रोजगार के अवसरों का नुकसान की स्थिति से उबरने के लिए विशेष अदालत द्वारा मुआवजा देने का प्रावधान है। यह मुआवजा अंतरिम स्तर पर या ट्रायल ख़त्म होने पर दिया जायेगा।

प्रश्न: क्या पोक्सो कानून के अन्तर्गत लैंगिक अपराध की सूचना मिलने पर इसकी रिपोर्टिंग करना अनिवार्य है?
उत्तर: पोक्सो कानून की धारा 21 के अंतर्गत लैंगिक अपराध की सूचना मिलने पर अनिवार्य रिपोर्टिंग का प्रावधान है, रिपोर्ट करने में असफल रहने पर 6 माह से एक वर्ष तक सजा का प्रावधान है ।

प्रश्न: किस प्रकार के लैंगिक अपराध को अधिक गंभीर (Agravated) माना गया है ?
उत्तर: यदि सरकारी पदाधिकारी/ कर्मचारी, पुलिस, शिक्षक, नजदीकी रिश्तेदार, बच्चों पर कार्य करने वाली संस्थाओं व एजेंसी में कार्य करने वाले व्यक्ति तथा जिसपर बच्चा भरोसा करता है, उनके द्वारा लैंगिक अपराध करने को अधिक गंभीर माना गया है और उसके लिए अधिक सजा का प्रावधान किया गया है ।

प्रश्न: यदि किसी होटल/ लौज/ अस्पताल/ क्लब/ स्टूडियो या फोटो सम्बन्धी कार्य करने वाले व्यक्ति को पता चलता है कि कोई सामग्री किसी बालक के लैंगिक शोषण से सम्बंधित है, तो वह क्या करेगा ?
उत्तर: यदि किसी होटल/ लौज/ अस्पताल/ क्लब/ स्टूडियो या फोटो सम्बन्धी कार्य करने वाले व्यक्ति को पता चलता है कि कोई सामग्री किसी बालक के लैंगिक शोषण से सम्बंधित है तो इसकी सुचना विशेष किशोर पुलिस ईकाई या स्थानीय पुलिस को उपलब्ध कराएगा ।

प्रश्न: पुलिस को पोक्सो कानून के तहत कौन कौन से एहतियात बरतने का निर्देश है ?
उत्तर: पुलिस को पोक्सो कानून के तहत मुख्य रूप से निम्न एहतियात बरतने का निर्देश है:
·         जाँच अधिकारी को पीड़ित बालक के सामने वर्दी में नहीं रहना है।
·         बच्चे को किसी भी हाल में रात में थाना में नहीं रखना है।
·         जितनी जल्दी संभव हो प्राथमिकी दर्ज करना है।
·         24 घंटे में मामले को बाल कल्याण समिति और विशेष न्यायालय में रिपोर्ट करना है।
·         जाँच अधिकारी सब-इंस्पेक्टर से नीचे के पद का नहीं होगा।
·         महिला होने पर जाँच अधिकारी महिला होगी।
·         सबूत को तीस दिन के भीतर रिकॉर्ड करना है।
·         164 का बयान माता-पिता या सहायक व्यक्ति की उपस्थिति में करना।

प्रश्न: क्या इस कानून में बच्चे की अश्लील या गलत तस्वीर दीखाना या फोटो लेने पर भी रोक है?
उत्तर: हाँ, अगर कोई व्यक्ति बच्चे की गलत तस्वीर लेता है या फिल्म दिखाता है, तो उसके लिए भी सजा का प्रावधान है ।

प्रश्न: पीड़ित बच्चे का बयान और सबूत की रिकॉर्डिंग के वक्त किस बात का ध्यान रखना है ?
उत्तर: इसमें पीड़ित बच्चे का बयान और सबूत की रिकॉर्डिंग बच्चे की सहूलियत को देखते हुए किया जाना है । जरुरी हो तो बीच में समय अन्तराल देकर उसकी मर्जी से बयान और सबूत लिए जाना चाहिए ।

प्रश्न: पीड़ित बालक का बयान किस स्थान पर लिया जायेगा ?
उत्तर: पीडित लडके या लड़की का बयान उसके घर या उसकी पसंद की जगह पर करने का प्रावधान है ।

प्रश्न: अगर बच्चा कोई ऐसी भाषा  बोलता हो या निःशक्त बालक हो, तो ऐसे मामले में बयान कैसे लेंगे ?
उत्तर: बच्चे का बयान लेते वक्त अगर जरुरत हो, तो भाषा-अनुवादक एवं निःशक्त बच्चों के लिए विशेष शिक्षक की मदद लेने का प्रावधान है।

प्रश्न: क्या पीड़ित बालक की मेडिकल जाँच के वक्त माता-पिता को बालक के साथ रहने दिया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, डॉक्टर द्वारा पीड़ित बच्चे की जाँच माता-पिता या अभिभावक की उपस्थिति में किये जाने का प्रावधान है ।

प्रश्न: यदि पीड़ित लड़की है, तो क्या उसकी जाँच पुरुष डॉक्टर द्वारा किया जा सकता है?
उत्तर: नहीं, यदि पीड़ित लड़की है, तो उसकी जांच महिला डॉक्टर द्वारा ही किये जाने का प्रावधान है ।

प्रश्न: बालक को गवाही के लिए बुलाने के समय क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: बच्चों को गवाही के लिए बार-बार नहीं बुलाया जायेगा तथा मामले की सुनवाई के दौरान बच्चे को अवकाश दिया जायेगा। यह भी ध्यान रखे जाने का प्रावधान है कि कोर्ट में केस की सुनवाई के समय बच्चे से परेशान करने वाला या सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला सवाल नहीं पूछा जायेगा ।

प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति या संस्था या कंपनी के प्रबंधन लैंगिक अपराध के मामले को छुपाता है अथवा रिपोर्ट नहीं करता है, तो क्या होगा?
उत्तर: ऐसी स्थिति में इस कानून के अन्तर्गत लैंगिक अपराध के मामले को छुपाने के लिए सजा देने का प्रावधान है।

प्रश्न: इस कानून के अन्तर्गत मामले को कितने समय में प्राथमिकी दर्ज किये जाने का प्रावधान है?
उत्तर: पोक्सो कानून की के अंतर्गत जितनी जल्दी संभव हो 24 घंटे के भीतर प्राथमिकी (FIR) दर्ज किया जाने का प्रावधान है।

प्रश्न: क्या मामले को दर्ज करने वाले व्यक्ति को प्राथमिकी की प्रति देने का प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, रिपोर्ट दर्ज करने वाले व्यक्ति को प्राथमिकी की एक मुफ्त प्रति दिए जाने का प्रावधान है।

प्रश्न: क्या पुलिस या कोई अन्य व्यक्ति बच्चे की पहचान पब्लिक और मीडिया में जाहिर कर सकता है?
उत्तर: नहीं, ऐसा करने की मनाही अधिनियम में है, जिसके उल्लंघन पर सजा का भी प्रावधान है। पर विशेष स्थिति में बच्चे के बेहतर हित को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय की अनुमति से ऐसा किया जा सकता है।

प्रश्न: अधिनियम के अन्तर्गत अन्य किन बातों का ध्यान रखने का प्रावधान है?
उत्तर: निम्न बातों का ध्यान रखने का प्रावधान है:
·        जिस व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगा हो, उसे बालक के संपर्क में नहीं आने दिया जायेगा।
·        बच्चे का बयान उसी की भाषा में दर्ज किया जायेगा।
·        अगर बच्चा अलग भाषा बोलता है तो इसमें इसमें द्विभाषीय की सहायता ली जाएगी ।
·        बच्चे के कथन का अभिलेखन माता-पिता/ सहायक व्यक्ति की उपस्थिति में किया जायेगा ।
·        यदि अपराध किसी बालक द्वारा किया गया है तो मामले को किशोर न्याय बोर्ड द्वारा सुना जायेगा न कि विशेष न्यायालय द्वारा।
·        इस कानून के भीतर सभी गंभीर अपराध गैर-जमानतीय एवं संज्ञेय हैं।

प्रश्न: पोक्सो अधिनियम एवं नियम के अन्तर्गत जिला बाल संरक्षण ईकाई के कौन-कौन से दायित्व हैं?
उत्तर: जिला बाल संरक्षण ईकाई का दायित्व है कि वह सम्बंधित जिले के इंटरप्रेटर, ट्रांसलेटर एवं स्पेशल एजुकेटर का संपर्क विवरण एक पंजी में नियमित रूप से रखे। ये विवरण/ जानकारी को जिले के विशेष किशोर पुलिस ईकाई, स्थानीय पुलिस, मजिस्ट्रेट, बाल कल्याण समिति एवं विशेष न्यायालय को उपलब्ध करवाए जिससे इस सुविधा का जरुरी होने पर बच्चे से बातचीत हेतु उपयोग में लाया जा सके।

 – शेषनाथ वर्णवाल

नोट – इस प्रश्नोतरी में दिए गए कानूनी प्रावधान सामान्य जानकारी के लिए हैं, अधिक जानकारी के लिए किसी कानून के जानकर से सलाह लें अथवा कानून की मूल प्रति का सन्दर्भ लें।